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अनु॑त्त॒मा ते॑ मघव॒न्नकि॒र्नु न त्वावाँ॑२ऽअस्ति दे॒वता॒ विदा॑नः। न जाय॑मानो॒ नश॑ते॒ न जा॒तो यानि॑ करि॒ष्या कृ॑णु॒हि प्र॑वृद्ध ॥७९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अनु॑त्त॒म्। आ। ते॒। म॒घ॒व॒न्निति॑ मघऽवन्। नकिः॑। नु। न। त्वावा॒न्निति त्वाऽवा॑न्। अ॒स्ति॒। दे॒वता॑ विदा॑नः ॥ न। जाय॑मानः। नश॑ते। न। जा॒तः। यानि॑। क॒रि॒ष्या। कृ॒णु॒हि। प्र॒वृ॒द्घेति॑ प्रऽवृद्ध ॥७९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:79


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (प्रवृद्ध) सबसे श्रेष्ठ सर्वपूज्य (मघवन्) बहुत धनवाले ईश्वर जिस (ते) आपका (अनुत्तम्) अप्रेरित स्वरूप है (त्वावान्) आपके सदृश (देवता) पूज्य इष्टदेव (विदानः) विद्वान् (नु) निश्चय से कोई (न) नहीं (अस्ति) है, आप (जायमानः) उत्पन्न होनेवाले (न) नहीं और (जातः) उत्पन्न हुए भी (न) नहीं हैं, (यानि) जिन जगत् की उत्पत्ति आदि कर्मों को (करिष्या) करोगे तथा (कृणहि) करते हो, उनको कोई भी (नकिः) नहीं (आ, नशते) स्मरणशक्ति से व्याप्त होता, सो आप सबके उपास्य देव हो ॥७९ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो परमेश्वर समस्त ऐश्वर्यवाला किसी के सदृश नहीं, अनन्त विद्यायुक्त, न उत्पन्न होता, न हुआ, न होगा और सबसे बड़ा, उसी की तुम लोग निरन्तर उपासना करो ॥७९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरविषयमाह ॥

अन्वय:

(अनुत्तम्) अप्रेरितम्। नसत्तनिषत्तानुत्त० ॥ (अष्टा०८.२.६१) इति निपातनम्। (आ) स्मरणे (ते) (मघवन्) बहुधनयुक्त ! (नकिः) आकाङ्क्षायाम् (नु) सद्यः (न) (त्वावान्) त्वया सदृशः (अस्ति) (देवता) देव एव देवता। स्वार्थे तल्। (विदानः) विद्वान् (न) (जायमानः) उत्पद्यमानः (नशते) व्याप्नोति। नशदिति व्याप्तिकर्मा ॥ (निघं०२.१९) (न) (जातः) उत्पन्नः (यानि) जगदुत्पत्त्यादिकर्माणि (करिष्या) करिष्यसि। सिज्लोपो दीर्घश्चात्र छान्दसः। (कृणुहि) करोषि। लडर्थे लोट्। (प्रवृद्ध) ॥७९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे प्रवृद्ध मघवन्नीश्वर ! यस्य तेऽनुत्तं स्वरूपमस्ति न कोऽपि त्वावान् देवता विदानो न्वस्ति भवान् न जायमानोऽस्ति न जातोऽस्ति यानि करिष्या कृणुहि च तानि कश्चिन्नकिरानशते स त्वं सर्वोपास्योऽसि ॥७९ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यः परमेश्वरोऽखिलैश्वर्योऽसदृशोऽनन्तविद्यो नोत्पद्यते नोत्पन्नो नोत्पत्स्यते सर्वेभ्यो महानस्ति तमेव यूयं सततमुपासीत ॥७९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! परमेश्वर संपूर्ण ऐश्वर्यवान असून, त्याच्यासारखा कुणीच नाही. तो अनंत विद्यायुक्त आहे. उत्पन्न होत नाही व होणार नाही. तो सर्वात मोठा आहे, त्याचीच तुम्ही निरंतर उपासना करा.